जिसने मदद की वही जेहादी???... जरा सोचिये.."ये कैसी पत्रकारिता???"
जिसने मदद की वही जेहादी???... जरा सोचिये!!! "ये कैसी पत्रकारिता???"
आप सभी का सहयोग चाहिए, ताकि उन तक आवाज़ पहुँच सके जो शीशे के दीवारों के पीछे बैठे खबरों का धंधा और सौदा करते हैं... आवाज़ पहुंचानी पड़ेगी ताकि अपने मानसिक दिवालियेपन से यह समाज का दिमाग न सडाये... जिस माध्यम के ऊपर ज़िम्मेदारी है अराजकता को उजागर करने की वही अराजक हो गया है ...
स्थिति यह हो गयी कि अख़बार उठाओ या न्यूज़ चैनल लगाओ तो पहले अपनी पढाई लिखाई भूल जाओ वरना पागल कर देंगे ये आजकल के पागल पत्रकार... साले... शीशे के पीछे से मुह चिढाते हैं, पत्थर मारने कि कोशिश की तो आपका ही नुकसान... अखबार फाड़ो तो आपके ही पैसे दाण जायेंगे... क्या करे पाठक अख़बार पढना छोड़ दे टीवी केवल नाच गाने के लिए देखे ... या "if you can't avoid it, lie down and enjoy it ... "जैसे विकृत जुमले की तर्ज़ पर हर सुबह अपना मानसिक बलात्कार करवाए ...
ताज़ा प्रकरण जिस महिला ने मुंबई हमलों के दौरान पीडितों की मदद की उसकी तस्वीर आतंकी की तस्वीर बना कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत की गई... पूरी ख़बर पढ़ें Jehadi? me?!
http://www.punemirror.in/index.aspx?page=article§id=62&contentid=2009040320090403045805846a9f81381§xslt=
"ज़रा सोचिये" "ये कैसा खबरनामा है", ये कैसा न्यूज़ चैनल है ???
सबके ऊपर ऊँगली उठाई ... अब अपने पर ऊँगली उठते देखो...
आप सभी का सहयोग चाहिए, ताकि उन तक आवाज़ पहुँच सके जो शीशे के दीवारों के पीछे बैठे खबरों का धंधा और सौदा करते हैं... आवाज़ पहुंचानी पड़ेगी ताकि अपने मानसिक दिवालियेपन से यह समाज का दिमाग न सडाये... जिस माध्यम के ऊपर ज़िम्मेदारी है अराजकता को उजागर करने की वही अराजक हो गया है ...
स्थिति यह हो गयी कि अख़बार उठाओ या न्यूज़ चैनल लगाओ तो पहले अपनी पढाई लिखाई भूल जाओ वरना पागल कर देंगे ये आजकल के पागल पत्रकार... साले... शीशे के पीछे से मुह चिढाते हैं, पत्थर मारने कि कोशिश की तो आपका ही नुकसान... अखबार फाड़ो तो आपके ही पैसे दाण जायेंगे... क्या करे पाठक अख़बार पढना छोड़ दे टीवी केवल नाच गाने के लिए देखे ... या "if you can't avoid it, lie down and enjoy it ... "जैसे विकृत जुमले की तर्ज़ पर हर सुबह अपना मानसिक बलात्कार करवाए ...
ताज़ा प्रकरण जिस महिला ने मुंबई हमलों के दौरान पीडितों की मदद की उसकी तस्वीर आतंकी की तस्वीर बना कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत की गई... पूरी ख़बर पढ़ें Jehadi? me?!
http://www.punemirror.in/index.aspx?page=article§id=62&contentid=2009040320090403045805846a9f81381§xslt=
"ज़रा सोचिये" "ये कैसा खबरनामा है", ये कैसा न्यूज़ चैनल है ???
सबके ऊपर ऊँगली उठाई ... अब अपने पर ऊँगली उठते देखो...
1 comments:
यह उसी प्रकार की पत्रकारिता एवं राजनीति है ,जिस प्रकार की पत्रकारिता हिन्दुओं की मूल भूमि में हिन्दू जीवन -शैली , हिंदुत्व की ,भारतीयता की बात करने वालों को सांप्रदायिक कहती है | जबतक वे विरोधी पाले में तब तक वे साम्प्रदायिक और इनके पाले में पला बदल करते ही : धर्म निरपेक्ष ? जब कि धर्म निरपेक्षता नामक कोइ भी ''चिडिया '' इस पृथ्वी क्या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ,सारी सृष्टि में , इस कायनात में कहीं होती ही नहीं ; होही नहीं सकती ? क्योंकि एक सीमा एक हद्दूद के बाद उनकी वही शिद्दत से कही गयी बात , ज़ुनून कि कि हद तक पहुँच चुकी हर एक कि या किसी कि भी कोई मान्यता उसका धर्म हो जाता है ,वह उसे धार्मिक नियम ,प्रतिबद्धता ,श्रद्धा से और पूरी जिद्द और सनक के साथ निभाने लगता है |ये वही टीवी पत्रकार हैं जो मुख्य समाचर शीर्षक में कहते हैं ''शंकराचार्य ने हत्या का जुर्म अपराध स्वीकार किया और इस प्रकार गंम्भीरता से कहते है कि जैसे शंकराचार्य ने इन्ही के कैमरे के सामने अपना अपराध स्वीकार कर अपने हाथों से लिखित बयान पर हस्ताक्षर किया हो और इन्होने अथवा इनके संपादक महोदय ने उसपर गवाहों के रूप में हताक्षर किये थे ; परन्तु समाचार विवरण में पूरी -पूरी बेशर्मी से " पुलिस " सूत्रों के अनुसार वाक्य का प्रयोग करते हैं |इनके लिए अयोध्या कि एक भवन का गिरना तो हर निर्वाचन पर याद आता है पर बंबई-ब्लास्ट जिसमें जाने कितनी जिन्दा भवन [इन्सान ] गिर गए नहीं यद आता ,क्यों कि निर्जीव भवन गिराने वालों को यह कुछ भी कहते है तो अपनी सहिष्णुता के मद्दे -नजर वह इन्हें कुछ नहीं कहेगा परन्तु यदि ये बंबई कांड के ''हीरों '' को कुछ कहते है तो कहीं इनकी बिल्डिंग [जिस्म ] से एक दो बम बांध कर इनकी जिस्मानी बिल्डिंग न चिथड़े कर दे | इन '' ग ''से गोधरा भी हुआ था नहीं याद आता , क्योंकि ओ कि मात्र ' उ ' के बाद आती है इस लिए ' उ ' कि ही मात्रा तक पहुच कर हांफने लगते हैं और '' उ '' के बगल बैठ कर '' उ ''कि मात्रा खिंची और गधे वाले '' ग '' में अटकी तो ''गु'' बनगया और इससे गुजरात ही लिखा जा सकता है ;गनीमत खुदा की कि इन्हें '' ऊ '' नहीं याद आता है नहीं तो जो लोग ''ग '' छोटी मात्रा लगा कर ही इतनी दुर्गन्ध फैलादेते है तब क्या करते ? खुदा खैर करे !!!!! और जो लोग उ से ओ की पहुँच नहीं बना पते वे वर्ण-माला के एक दम अंत में '' स '' से सिक्ख कैसे लिख पायेगे वैसे यह टिपण्णी से ज्यादा टी प णी हो चुकी है |
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