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Thursday, April 16, 2009

अब न रहा वो सद्दाम का इराक !


पश्चिमी मिडिया में लगातार छपी खोजी रपटों से मार्डेन हिस्ट्री की जघन्यतम हत्या की सच्चाई छन छन कर सुर्खियों में आई थी | जार्ज वाकर बुश, जो अब राष्ट्रपति नहीं रहे, ने विश्व बिरादरी से झूठ बोला था कि इराक के दिवंगत राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन (जिन्हें शहीद कर दिया गया था) नरसंहार के भयावह शस्त्रों के उत्पादन में जुटे थे | अमेरिका के वर्तमान रष्ट्रपति बराक़ हुसैन ओबामा ने चुनाव के समय यह कहा था कि उनके प्रतिद्वंदी जान मैक्कन की रिपब्लिकन पार्टी झूठ के पहाड़ पर खड़ी हुई है और अमेरिका की जनता ही इसका जवाब देगी | हुआ भी यही चुनाव के बाद की तस्वीर साफ़ है, अब वहां बुश की पार्टी हाशिये पर आ गयी और इसी के चलते बुश से पहले ब्रितानिया हुकुमत टोनी ब्लेयर के हाथो से निकल गयी और टोनी ब्लेयर को इराक पर गुमराह करने करने के कारण ही ब्रिटेन के प्रधानमत्री का पद छोड़ना पड़ा | उधर अमेरिका में मुस्लिम से ईसाई बने बराक हुसैन ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने लेकिन विश्व बिरादरी को ज्यादा खुश होने की ज़रुरत नहीं है कि बराक ओबामा के अमेरिका का राष्ट्रपति बन गए हैं| 
बुश का जो हाल हुआ वो तो होना ही था, इराकी पत्रकार ने जूता मारकर उनकी औकात बता दी | इतिहास के कठघरे में बुश अभियुक्त बन कर पेश होंगे, जब इराक पर अमेरिकी नरसंहार की खबर और ज्यादा पेश होंगी और तब से वर्तमान तक हजारों बेगुनाहों की जानों का ठीकरा बुश के सर फूटेगा, मैं तो इसे दुनिया की सबसे बड़ी आतंकी हमला कहूँगा, जो अमेरिका ने इराक पर किया| बुश क्या इससे पहले भी जैसा कि सबको पता है वियतनाम पर रिचर्ड निक्सन की बमबारी के वर्षों बाद उजागर हुई थी | आज सद्दाम हुसैन को राष्ट्रवादी शहीद का दर्जा और खिताब मिल चुका है | उनकी हत्या का प्रतिरोध और प्रतिकार इराक में रोज़ हो रहा है, अमेरिकी सैनिकों (आतंकी घुसपैठिये) और उनके अरब दलाल की बम विस्फोटों में मौतें इसके सबूत हैं| मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ क्या इराक पर अमेरिकी आतंकी हमले से पूर्व वहां इतनी ही अशांति थी, अवश्य आपका जवाब नहीं होगा और आप यह ज़रूर कहेंगे कि पहले वह बहुत खुशनुमा माहौल था | 
उन्नीस साल पहले सीनियर जार्ज बुश ने सद्दाम हुसैन पर पहले बमबारी की थी| प्रतिकार में सदाम हुसैन ने पुत्र और इराकी पत्रकार उनियां के प्रेसिडेंट उदय हुसैन ने इराक के होटलों के प्रवेश द्वार पर बिछे पायदान में बुश की आकृति बुनवा कर लगा दी | महाबली के अपमान का यह नायाब तरीका था | पितृऋण चुकाने का इसके बाद जूनियर बुश ने बिल क्लिंटन के बाद राष्ट्रपति निर्वाचित होते ही बदला लेने के लिए मौके तलाशे और इराक पर बमबारी कर दी | बहाना था इराक में नरसंहार के आयुधों का उत्पादन जो आजतक साबित नहीं हो सका |

सदाम हुसैन का अवसान भारत के लिए राष्ट्रिय त्रासदी थी क्यूंकि वह इस्लामी राष्ट्रनायकों में एक वाहिद सेकुलर व्यक्ति था | केवल चरमपंथी लोग ही उसकी मौत की पीड़ा से अछूते रहे | कारण ? दर्द की अनुभूति के लिए मर्म होना चाहिए | इराकी समाजवादी गणराज्य के दिवंगत राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन अल तिकरिती पर चले अभियोग और फिर सुनाये गए फैसले को महज राजनैतिक प्रहसन कहा जायेगा| 

भारत के हिन्दू राष्ट्रवादियों को याद दिलाना चाहता हूँ कि सदाम हुसैन अकेले मुस्लिम राष्ट्राध्यक्ष थे जिन्होंने कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग माना और ऐलानिया कहा भी | अयोध्या कांड पर बाबरी मस्जिद शहीद हुई थी तो इस्लामी दुनिया में बवंडर मचा था तो उस वक़्त बगदाद शांत था| बकौल सद्दाम हुसैन "वह एक पुराणी ईमारत गिरी है, यह भारत का अपना मामला है| उन्हीं दिनों ढाका में प्राचीन ढाकेश्वरी मंदिर ढहाया गया| तसलीमा नसरीन ने अपनी कृति (लज्जा) में हिन्दू तरुणियों पर हुए वीभत्स ज़ुल्मों का वर्णन किया| इसी पूर्वी पकिस्तान को भारतीय सेना द्वारा मुक्त करने पर शेख मुजीब के बांग्लादेश को मान्यता देने में सद्दाम सर्वप्रथम थे|

इंदिरा गाँधी की (1975) इराक यात्रा पर मेजबान सद्दाम हुसैन ने उनका सूटकेस उठाया था | जब राएबरेली लोकसभा चुनाव में वे हार गयीं तो इंदिरा गाँधी को बगदाद में स्थाई आवास की पेशकश सद्दाम ने की थी | पोखरण द्वितीय पर अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार को सद्दाम ने बधाई दी थी, जबकि कई राष्ट्रों ने आर्थिक प्रतिबन्ध लादे थे| सद्दाम के नेतृत्व वाली बाथ सोशलिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के राष्ट्री अधिवेशनों में शिरकत करते रहे| भारत के राजनेताओं को ज़रूर याद होगा कि भारतीय रेल के लाखों कर्मचारियों को आकर्षक अवसर सद्दाम ने वर्षों तक उपलब्ध कराए| 

उत्तर प्रदेश सेतु निर्माण निगम में तो इराक से मिले ठेकों से खूब पैसा कमाया| 35 लाख भारतीय श्रमजीवी सालाना एक ख़राब रुपये भारत भेजते थे | भारत को इराकी तेल सस्ते दामों पर उपलब्ध होता था | इस सुविधा का भी खूब दुरूपयोग तत्कालीन रूलिंग पार्टी के नेताओं ने किया था| इराक के तेल पर कई भारतीयों ने बेशर्मी से चाँदी काटी| 

एक दैनिक हिंदी अखबार में एक संपादक श्री के. विक्रम राव ने अपनी इराक यात्रा की वर्णन में यह कहा था कि उसे इराक में के शहरों में तो बुरका नज़र ही नहीं आया था | उन शहरों में कर्बला, मौसुल, तिकरिती आदि सुदूर इलाके थे| स्कर्ट और ब्लाउज राजधानी बगदाद में आम लिबास था, माथे पर वे बिंदिया लगतीं थी और उसे हिंदिया कहती थीं| लेकिन पूरी तरह से पश्चिम का गुलाम हो चुका हमारा मिडिया तो वहां की ऐसी तस्वीर दिखाता कि पूछो मत |

अब की तस्वीर पर अज़र डालेंगे तो मिलेगा की सद्दाम के समय में हुई तरक्की में अब गिरावट आ गयी है बल्कि वह पतन पर है| टिगरिस नदी के तट पर या बगदाद की शादकों पर राहजनी अब आम बात हो गयी है | एक दीनार जो साथ रुपये के विनिमय दर पर था आज रुपये में बीस मिल जायेंगे और अब तो विदेशी विनिमय के दफ्तर यह कहते हैं कि आर बी आई के अनुसार इराकी मुद्रा विनिमय योग्य नहीं है | दुपहियों और तिपहियों को पेट्रोल मुफ्त मिलता था, शर्त यह थी कि ड्राईवर या गाड़ी मालिक उसे स्वयं भरे | और भारत में बोतल भर एक लीटर पानी दस रुपये का है| सद्दाम के इराक में उसके छते अंश पर लीटर भर पेट्रोल मिलता था | अमेरिका द्वारा थोपे गए कथित लोकतान्त्रिक संविधान के तहत इराक के सेकुलर निजाम की जगह अब अमेरिका के दलालों ने ले ली है, जिनमे कठमुल्ले भी हैं| 

लेकिन भाजपाई जो मोहमद अली जिन्ना को सेकुलर के खिताब से नवाजते हैं, सद्दाम हुसैन को सेकुलर नहीं मानेंगे | उसका कारण भी है सद्दाम हुसैन पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ते थे, वहां नमाज़ के वक़्त दुकाने और प्रतिष्ठान बंद हो जाते थे | सद्दाम हुसैन अपने साथ हर वक़्त कुरान की एक प्रति अपने साथ रखते थे| पैगम्बर मोहम्मद (इश्वर की उन पर शांति हो) के साथ साथ ईसा मसीह को भी इसलाम के पैगम्बर में से एक मानते थे| इसका उन्होंने खामियाजा भुगता | अमेरिकी पूंजीवादी दबाव में साउदी अरब के शाह नेशलिस्ट इराक को नेस्तनबुत करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी | साउदी अरब में प्यारे नबी मोहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) के जन्मस्थली के निकट अमेरिकी सेना (हमलावर, आतंकवादी) को जगह दी और जन्मस्थली के ऊपर से जहाज़ उड़ कर प्यारे नबी के नवासे के कुरबानगाह पर बम बरसाए |

सद्दाम के डर के मारे अरबी शासकों के लिए यह भी था कि इराकी सेना ने कुवैत पर कब्जा किया है (कुवैत इराक का अभिन्न अंग था) और वह मज़हबी सुधार लाया था | पिछली सदी के चौथे दशक तक कुवैत इराक का अभिन्न अंग था| सद्दाम को दण्डित करने के कारणों की यूरोप अमेरिकी राष्ट्रों ने लम्बी लिस्ट बनाई मगर मुकदमा चलाया पच्चीस साल पुराना घटना के आधार पर | अपराध मडा दुजाईल प्रान्त में 148 शिया विद्रोहियों की (1982 में) हत्या करवाने का |  

मगर इतिहास करवट लेता है | सद्दाम हुसैन भी अब इमरे नाष की भांति इराकी देशभक्त और इस्लामी राष्ट्रवाद के प्रतिक बन रहे हैं, जैसे मिस्र के जमाल अब्दुल और तुर्क के मुस्तफा कमाल पाशा अतातुर्क हैं|

1 comments:

डिम्पल मल्होत्रा April 19, 2009 at 9:48 AM  

achhe lekh hai...kuchh naya pata chalta hai....kuch sirf smachaar jaise hai...sweden heen hum bhi nahi hai..

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