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Wednesday, September 16, 2009

अपने सम्मान के चक्कर में देश के सम्मान पर कचरा फेका




भारत माता और राष्ट्र ध्वज , ये नाम हमारे देश में २ दिन ही याद किये जाते है . १५ अगस्त , २६ जनवरी इन दो दिनों में भारत माता, राष्ट्र ध्वज के गुणगान - बखान में कोई कमी नहीं की जाती . इन्ही दो दिनों में राष्ट्रीय संगीत, ध्वज और धव्जो के मान - अपमान के समाचारों से चैनेल और अखबार पटे रहते है . याद करे नविन जिंदल की याचिका जिसके उपरांत न्यायलयिन निर्णय ने सारे देश में राष्ट्रीय ध्वज और भावनाओ को गली गली ,चौराहो - चौराहो में प्रदर्शित करने छुट दे दी फलस्वरूप इन दो दिनों में गली चौराहो में राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीयता से ओत - प्रोत संगीत आपको इस तरह सुनने मिलेगे मानो ऐसा लगेगा की इन से बड़ा राष्ट्र भक्त तो दुनिया में नहीं है , पर आज ये दो दिवसीय राष्ट्र भक्त भी कही नजर नहीं आ रहे है जिनके नजरो के सामने राजधानी के बीचो - बीच भारत माता की प्रतिमा और राष्ट्रीय ध्वज का खुले आम दिन में हजारो - हजार बार अपमान हो रहा है .

दरसल यह वाक्या छतीसगढ की राजधानी रायपुर का है शहर के बीचो बीच नवनिर्मित गौरव पथ में छत्तीसगढ़ , छत्तीसगढ़ी संस्कृति और कला से जुडी कलाकृतिया स्थापित की गई है उसी गौरव पथ में से एक चौक शंकर नगर चौराहे पर हाथ में ध्वज लिए ए़क प्रतिमा स्थापित है जिसके पीछे साफ साफ स्वर्णिम अक्षरो में " भारत माता की जय हो " अकित है अशोक चक्र के बगैर ध्वज धारण करे यह प्रतिमा जिसमे सिर्फ तीन ही रंगों की परत का झंडा दिखाई पड़ता है अशोक चक्र नहीं . तीन रंगों में चक्र न हो तो वह बस झंडा भर रह जाता है दरसल चक्र न्याय का प्रतिक है और एक चक्र सम्राट अशोक की शिलालेख से भारतीय सविधान ने अंगीकार किया था जो अब व्यवस्था का इस कदर शिकार हो गया है की झंडे में अब उसकी अहमियत नहीं समझी जाती , यह कुछ ऐसा ही है जैसे फूलो को अपने सुगंध से दूर करने का प्रयास करे .

हम यह बताना चाह रहे है या ये खुद भी समझ रहे होगे की इनका ईक्क्ठा होना किसी की महिमा में बढोतरी करने वाला नहीं बल्कि ये ढेर है जिसे की गणितीय शबदावली में समुच्चय कहा जा जकता है ... बुच्ड खाना ,,,,,. इस छाया चित्र को देखिये , ये अपने सम्मान के चक्कर में ऐसे उलझे की इन्हें पता ही नहीं रहा , अपने सम्मान को ढोते वक्त ये देश के सम्मान पर कचरा फेक रहे थे

प्रदेश के नामचीन पढ़े लिखे तबके का आभिजात्य संस्क्रति का एक ऐसा स्वरूप देखने को मिला जिसे महसूस कर ५ वि कक्षा में पढने वाला नौनिहाल भी हत प्रभ रह जाता है बात किसी ऐरे गैरे की हो तो उसकी जुगाली नहीं की जा सकती लेकिन यहाँ चित्र में जितने भी मौजुद , कल्प के कुर्ते में है सब छत्तीसगढ में प्रथम पंक्ति के महानुभाव है . सबकी जुबान पर कभी ए़क ही वाक्य रहा करता था " मां " तेरा वैभव अमर रहे , [ आर एस एस गान ] आज स्थिति बदली नजर आती , इन्हें अपने वैभव की चिंता है लेकिन माँ के वैभव को छोड दे, इन्हें माँ के स्वभाव का भी ख्याल नहीं है सच कहा गया है माँ कुमाता नहीं हो सकती पुत्र भले ही कपूत हो सकता है चित्र को देखे स्पष्ट है माँ कैसी है और माँ के बेटे कैसे है जो यह अंतर समझ लेगा इन बेटो को छोड़ कर उनसे दुरी बना । माँ के करीब जाने का जतन करेगा .

बहरहाल राज्य के इन कर्णधारो की जरा भावःभंगिमा देखिये विवादों में ये पड़ते नहीं हल्की हल्की बात कर मुह चुरा लेते है न अपने मान की , न मिटटी के सम्मान की इन्हें चिंता होती है बस चहरे पर मुस्कुराहट तिरती रहती है शायद बचपन में रामधारी सिह दिनकर की यह कविता यह भूल गए है की " समर शेष है तो तटस्थ होगा , इतिहास में उनका भी अपराध दर्ज होगा " ये तटस्थ है तो आइये मिटटी के मान सम्मान में हम अपने लघु भावः - सहभागी बने


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