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Monday, September 28, 2009

" रावण अभी जिन्दा है "

" रावण अभी जिन्दा है "
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संपादकीय
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विजयादशमी पर्व की शुभकामनाये

Thursday, September 24, 2009

राजा तुम दुखी हो............. ?




राजा तुम दुखी हो............. ?
बुधवार की घटना है, मुख्यमंत्री ने बुधवार को जो कहा गुरुवार को अमल में लाया शुक्रवार ,शनिवार ,रविवार को समय के हिस्से में बहुत सारी बाते खुद व खुद अमल में आ जायेगी । , खुलती परतों से कोई आहत हो तो हम बता दें कइयों को राहत किसी एक को आहत करने से मिलती हो तब यह कदम ज्यादा सर्वश्रेष्ठ होता है या कहलाता है। आखिरी में एक सवाल है।
बुधवार की घटना थी -

कोरबा के एक प्लांट में चिमनी गिरने से धरती के मजदूर जिनकी संख्या 35 है वे मर गए। चिमनी में आग लगी थी। कम्पनी डी.जी.सी.एल. है।
मजदूरों के हितैषी, संवेदनशील, जननायक दयालू -कृपालु (आपके पास और कोई उपमा/या विशेषण हो तो उसे जोड़कर पढ़े) मुख्यमंत्री ड़ॉ. रमन सिंह ने इस हृदय विदारक घटना पर पत्रकारों को मोबाईल पर जो एसएमएस भेजकर अपनी प्रतिक्रिया दी वह थी यह :- क्रमशः आगे पढ़े
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सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

Tuesday, September 22, 2009

क्या विज्ञापनो से प्रदेश " अव्वल" बनेगा ?



" अव्वल" हिंदी का साधारण शब्द लेकिन हम सब के जीवन में खास अहमियत रखता है हमारा सारा जीवन इस " अव्वल" शब्द की पदवी को हासिल करने में चला जाता है कुछ लोग इसे हासिल कर लेते है तो कुछ हसरत लिए दुनिया से चल देते है हर मुकाम पर अपने और अपने खास लोगो को अव्वल देखने की चाह हमेशा हमारे मन में हिलोरे मारते रहती है देश की बात करे तो कर्ज लेने में " अव्वल", नेताओ की बात करे तो झूट बोलने में " अव्वल", जनता है तो ...गलत जनप्रतिनिधि चुनने में " अव्वल" ,...... अधिक पढ़ें http://bhadas4cg.com/



Sunday, September 20, 2009

एक नजर




Wednesday, September 16, 2009

अपने सम्मान के चक्कर में देश के सम्मान पर कचरा फेका




भारत माता और राष्ट्र ध्वज , ये नाम हमारे देश में २ दिन ही याद किये जाते है . १५ अगस्त , २६ जनवरी इन दो दिनों में भारत माता, राष्ट्र ध्वज के गुणगान - बखान में कोई कमी नहीं की जाती . इन्ही दो दिनों में राष्ट्रीय संगीत, ध्वज और धव्जो के मान - अपमान के समाचारों से चैनेल और अखबार पटे रहते है . याद करे नविन जिंदल की याचिका जिसके उपरांत न्यायलयिन निर्णय ने सारे देश में राष्ट्रीय ध्वज और भावनाओ को गली गली ,चौराहो - चौराहो में प्रदर्शित करने छुट दे दी फलस्वरूप इन दो दिनों में गली चौराहो में राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीयता से ओत - प्रोत संगीत आपको इस तरह सुनने मिलेगे मानो ऐसा लगेगा की इन से बड़ा राष्ट्र भक्त तो दुनिया में नहीं है , पर आज ये दो दिवसीय राष्ट्र भक्त भी कही नजर नहीं आ रहे है जिनके नजरो के सामने राजधानी के बीचो - बीच भारत माता की प्रतिमा और राष्ट्रीय ध्वज का खुले आम दिन में हजारो - हजार बार अपमान हो रहा है .

दरसल यह वाक्या छतीसगढ की राजधानी रायपुर का है शहर के बीचो बीच नवनिर्मित गौरव पथ में छत्तीसगढ़ , छत्तीसगढ़ी संस्कृति और कला से जुडी कलाकृतिया स्थापित की गई है उसी गौरव पथ में से एक चौक शंकर नगर चौराहे पर हाथ में ध्वज लिए ए़क प्रतिमा स्थापित है जिसके पीछे साफ साफ स्वर्णिम अक्षरो में " भारत माता की जय हो " अकित है अशोक चक्र के बगैर ध्वज धारण करे यह प्रतिमा जिसमे सिर्फ तीन ही रंगों की परत का झंडा दिखाई पड़ता है अशोक चक्र नहीं . तीन रंगों में चक्र न हो तो वह बस झंडा भर रह जाता है दरसल चक्र न्याय का प्रतिक है और एक चक्र सम्राट अशोक की शिलालेख से भारतीय सविधान ने अंगीकार किया था जो अब व्यवस्था का इस कदर शिकार हो गया है की झंडे में अब उसकी अहमियत नहीं समझी जाती , यह कुछ ऐसा ही है जैसे फूलो को अपने सुगंध से दूर करने का प्रयास करे .

हम यह बताना चाह रहे है या ये खुद भी समझ रहे होगे की इनका ईक्क्ठा होना किसी की महिमा में बढोतरी करने वाला नहीं बल्कि ये ढेर है जिसे की गणितीय शबदावली में समुच्चय कहा जा जकता है ... बुच्ड खाना ,,,,,. इस छाया चित्र को देखिये , ये अपने सम्मान के चक्कर में ऐसे उलझे की इन्हें पता ही नहीं रहा , अपने सम्मान को ढोते वक्त ये देश के सम्मान पर कचरा फेक रहे थे

प्रदेश के नामचीन पढ़े लिखे तबके का आभिजात्य संस्क्रति का एक ऐसा स्वरूप देखने को मिला जिसे महसूस कर ५ वि कक्षा में पढने वाला नौनिहाल भी हत प्रभ रह जाता है बात किसी ऐरे गैरे की हो तो उसकी जुगाली नहीं की जा सकती लेकिन यहाँ चित्र में जितने भी मौजुद , कल्प के कुर्ते में है सब छत्तीसगढ में प्रथम पंक्ति के महानुभाव है . सबकी जुबान पर कभी ए़क ही वाक्य रहा करता था " मां " तेरा वैभव अमर रहे , [ आर एस एस गान ] आज स्थिति बदली नजर आती , इन्हें अपने वैभव की चिंता है लेकिन माँ के वैभव को छोड दे, इन्हें माँ के स्वभाव का भी ख्याल नहीं है सच कहा गया है माँ कुमाता नहीं हो सकती पुत्र भले ही कपूत हो सकता है चित्र को देखे स्पष्ट है माँ कैसी है और माँ के बेटे कैसे है जो यह अंतर समझ लेगा इन बेटो को छोड़ कर उनसे दुरी बना । माँ के करीब जाने का जतन करेगा .

बहरहाल राज्य के इन कर्णधारो की जरा भावःभंगिमा देखिये विवादों में ये पड़ते नहीं हल्की हल्की बात कर मुह चुरा लेते है न अपने मान की , न मिटटी के सम्मान की इन्हें चिंता होती है बस चहरे पर मुस्कुराहट तिरती रहती है शायद बचपन में रामधारी सिह दिनकर की यह कविता यह भूल गए है की " समर शेष है तो तटस्थ होगा , इतिहास में उनका भी अपराध दर्ज होगा " ये तटस्थ है तो आइये मिटटी के मान सम्मान में हम अपने लघु भावः - सहभागी बने


Sunday, September 13, 2009

एक नजर
















ये छाया चित्र दुर्ग से रीतेश टिकरिहा ने भेजी है

Saturday, September 12, 2009

अगर आपके पास इस छाया चित्र के लिए शब्द है तो हमें भेजिये


यह छाया चित्र स्थानीय अख़बार दैनिक छत्तीसगढ़ से लिया गया है लेकिन इस चित्र को देखने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और मै तारीफ करता हु उस फोटो ग्राफर की जिनकी निगाहे काबिले तारीफ है जिन्होंने इसे अपने कैमरे में कैद किया
अगर आपके पास इस छाया चित्र के लिए शब्द है तो हमें भेजिए
Cg4भड़ास .काँम

Saturday, September 5, 2009

"पितृ पक्ष श्राद्ध " में कौओं का अकाल


कौआ , सर्वस्थ और बहुतायत में पाया जाने वाला पक्षी इन दिनों दुर्लभ हो चला है शहरों में कांव कांव की ध्वनी से जहा तहा आकर्षित करने वाला कौआ अब शहरों में ढूंढे नहीं मिलता यही वजह है की पितृ पक्ष में श्राद्ध की पुरातन परम्परा को पूरा करने के लिये कौओं को रोटी खिलाने वालों को इन दिनों काफी निराशा का सामना करना पड रहा है यह मामला कही और का नहीं छत्तीसगढ. का है छग पत्थलगांव के हवाले से वार्ता की इस खबर पर नजर पड़ते ही मै चकित रह गया .पर ये सच है औद्योगिकीकरण और अन्य कारणों के चलते तेजी से बढ रहे पर्यावरण प्रदूषण के चलते शहरी क्षेत्रों में इन दिनों कौए दुर्लभ पक्षी बन गया हैं
पक्षी विशेषज्ञ और धरमजयगढ वन मण्डल अधिकारी हेमन्त पाण्डेय का कहना है कि कौए वातावरण के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं1 पानी और भोजन में कीटनाशक और रासायनिक दवाओं के जरूरत से ज्यादा प्रयोग होने से कौऐ तथा अन्य पक्षी आबादी से काफी दूर जा रहे हैं
श्री पाण्डेय ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य के साथ.साथ पक्षियों पर भी विपरीत असर पड रहा है1 यही वजह है कि अब शहरी क्षेत्रों में कौओं की कांव.कांव कम सुनाई पडने लगी है
बहरहाल श्री पाण्डेय की बात पर गौर और विश्वाश करे तो छत्तीसगढ में वन्य जीव प्रेमियों के लिए चिंता का विषय हो सकता है पर यही खबर उन सभी के लिए खुश खबरी से कम नहीं जो किसी अवसर की तलाश में जो अपनी गिध्ध द्रष्टि लगाये सिर्फ बजट के इंतजार में रहते है

Thursday, September 3, 2009

बढ़ेगा राष्ट्रभाषा का दायरा

राजकुमार साहू, जांजगीर


हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव के कारण इसका दायरा सिमट कर रह गया है। हिन्दी हमारे देश का गौरव व अभियान है और किसी देश को कोई भाषा ही एकता के सूत्र बांधे रख सकती है, क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति का यह सशक्त माध्यम होती है। पिछले दिनों केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने समान कोर पाठ्यक्रम की वकालत करते हुए राष्ट्रभाषा हिन्दी को देश के सभी स्कूलों में पढ़ाए जाने को लेकर जिस ढंग से जोर दिया है, यह अच्छा संकेत है। यदि ऐसा होता है और देश भर के सभी स्कूलों में हिन्दी पढ़ाया जाता है तो राष्ट्रभाषा का दायरा तो बढ़ेगा ही, इससे हर भारतवासियों के लिए किसी भी राज्य या हिस्से में अभिव्यक्ति को लेकर कहीं भी असमंजस की स्थिति पैदा नहीं होगी, जो अक्सर ऐसी बात सामने आती रहती है।
राष्ट्रभाषा हिन्दी, भारत का स्वाभिमान का प्रतीक है तथा इसका अनेकता में एकता के सूत्र वाक्य का देश में अपना एक महत्व है, क्योंकि भारत ही दुनिया का ऐसा देश है, जहां हर मामले में विविधता पाई जाती है। चाहे वह भाषा की बात हो या फिर धर्म की तथा जाति हो या अन्य क्षेत्रीयता सहित विविधता की बात हो। सभी मामलों में यहां विविधता है, लेकिन देशवासियों में एकता की भावना एक है, इसमें कहीं विविधता नहीं है। यही कारण है कि आज तक किसी ने यहां की एकता व अखंडता का डिगा नहीं सका है। भारत देश में धर्मनिरपेक्षता की बात दुनिया के लिए मिसाल बनी हुई है। ऐसे में भाषा के मामले में अब क्षेत्रीय भाषाओं के साथ राष्ट्रभाषा हिन्दी भी पढ़ाए जाने के, जोर पकडऩे से निश्चित ही इससे देश के लोगों में विचारों के आदान-प्रदान में वृद्धि होगी, क्योंकि देश के २८ राज्यों में कुछ ही राज्य हैं, जहां हिन्दी पूर्णरूपेण बोला जाता है। कई राज्यों में क्षेत्रीय भाषा व अंग्रेजी का एकाधिकार है। ऐसे में होता यह है कि जब किसी राज्य में जाता है तो वहां राष्ट्रभाषा के जानकार नहीं मिलने से उसे अपनी बात कहने तथा अन्य कार्यों संबंधी दिक्कते हो जाती हैं। संविधान ने अनेक राज्यों में बोली जाने वाली भाषा को स्थान दिया हुआ है और क्षेत्रीय होने के नाते इसकी जानकारी होना व इस भाषा को बोलना तो जरूरी है ही, लेकिन देश के नागरिक होने के नाते ह हर किसी को राष्ट्र की भाषा हिन्दी की जानकारी भी जरूरी है। चाहे वह बोलने की बात हो या फिर लिखने की। मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी को देश के सभी स्कूलों में लागू किए जाने की पहल सराहनीय है। निश्चित ही इससे हिन्दी भाषा का दायरा तो बढ़ेगा। साथ ही देश भर कोई ऐसी भाषा भी होगी, जिससे कोई भी अपनी बात, कहीं भी रख सकता है। इसके लिए उसे विदेशी भाषा अंग्रेजी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। दुनिया में अंग्रेजी का दायरा बढ़ रहा है। भारत में भी बीते कुछ दशक के दौरान अंग्रेजी का साख बढ़ रहा था, लेकिन मानव संसाधन मंत्रालय के इस पहल से हिन्दी का दायरा कुछ ही राज्यों में न होकर देश के सभी इलाकों तक बढ़ जाएगा।
हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के बाद भी कई राज्यों में प्रशासनिक कामकाज हिन्दी में नहीं होती। यह एक चिंतनीय बात है। कई ऐसे सेक्टर हैं, जहां दूर-दूर तक हिन्दी का दखल नहीं है। इस बारे में सरकार ने देर से सोची, लेकिन अब इस निर्णय से जरूर लाभ होगा। देश के स्कूलों में हिन्दी भाषा पढ़ाने की वकालत को यदि अमलीजामा पहनाया जा सकेगा तो इसे राष्ट्रभाषा के विकास व उत्थान की दिशा में अब तक के सबसे बड़े प्रयास के रूप में माना जा सकता है। लोगों को लगता है कि हिन्दी भाषा से पढ़ाई कर जीवन में आगे नहीं बढ़ा जा सकता, यह गलत है, क्योंकि इसका दायरा पहले से ही काफी बढ़ गया है। दुनिया में हिन्दी अखबारों की संख्या अंग्रेजी से कहीं ज्यादा है और इसके पाठकों की भी संख्या अधिक है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिन्दी कितनी समृद्ध है। हालांकि समय के कुछ थपेड़ों ने हिन्दी को लोगों से दूर कर दिया था और इसकी जगह अंगे्रजी ले रही थी, लेकिन देश में हिन्दी, राष्ट्र की अस्मिता के लिए जानी जाती रही है और जाना जाता रहेगा।
हर वर्ष १४ सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। इस दिन तमाम तरह के आयोजन होते हैं, लेकिन इसके बाद हिन्दी की महत्ता व राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने वाली भाषा विकास के बारे में कोई नहीं सोचता। इसी का परिणाम है कि आजादी के बाद देश में हिन्दी भाषा का दायरा जितना बढऩा चाहिए था, वह नहीं बढ़ सका है। फिर एक बार हिन्दी दिवस की तारीख नजदीक आती जा रही है। ऐसे में हम सभी को राष्ट्रभाषा की समृद्धि को लेकर संकल्प लेना होगा कि देश ही नहीं, दुनिया में भी राष्ट्रभाषा हिन्दी को एक नई ऊंचाई हासिल हो। ऐसे में मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के देश के सभी स्कूलों में हिन्दी पढ़ाने की वकालत, एक स्वर्णिम पल कहा जा सकता है, जिससे हिन्दी की शाख और बढ़ेगी। यदि ऐसा होता है तो देश के किसी भी कोने के लोगों के विचारों का आदान-प्रदान होगा और एक-दूसरे से अभिव्यक्ति भी आसानी से हो जाएगी। अलग-अलग राज्यों में लोगों को अलग-अलग भाषा का ज्ञान होने से कई बार अपनी विचारों को अभिव्यक्त करने में दिक्कतें आ जाती हैं। इस तरह यह पहल कई मायनों में अनुकरणीय है। राष्ट्रभाषा हिन्दी, देश के सभी स्कूलों में जिस दिन से पढ़ाया जाने लगेगा, वह दिन आजाद भारत का एक और स्वर्णिम अवसर होगा, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा और इसे हर भारतवासी हमेशा याद रखेगा और मिलकर कहेंगे हिन्दी हैं हम...।
राजकुमार साहू, जांजगीर

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