रोने का बहाना नहीं ,लड़ने का हौसाला चाहिए
देश - प्रदेश में जब भी कोई बड़ी वारदात के मद्देनजर जन हानि होती है तब-तब बहुत से संगठन महाबंद और मोमबत्ती जलने से परहेज नहीं करते . आज कल ये फैशन सा बनता जा रहा है
जिसे देखो गाँधी की तर्ज में गाँधी बनाने की चाह लिए इस तरह के कार्यो का आयोजन करते दिखाई पड़ते है . सवाल आखिर यह है की क्या मोमबत्ती जलने और महाबंद जैसे आयोजनों से समस्या का समाधान हो जायेगा या फिर जनहानि को रोका जासकेगा दुसरे शब्दों में हम यह कहे की क्या इस कार्यो से धटित जनहानि की पूर्ति की जा सकेगी ...? शायद नहीं . अच्छा तो यह होता इसके बजाये यह संगठन हमसे दूर हुए जवानो के परिवार में से किसी एक परिवार के लिए कुछ करते. .यह संगठन इतने ही चिंतीत है तो अपनी एक दिन की तनख्वाह या अपना एक दिन में खर्च की गई राशी इन्हें भेट कर देते तब लगता की हा ये जमीनी रूप से इन सब के लिए चिंतित है बहरहाल लड़ने का हौसाला खो चुके इन संगठनों के लिए हम यही कहेगे, इन सभी को रोने का बहाना चाहिए ...
2 comments:
...बहुत खूब... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
शाब्दिक सहानुभूति की अपेक्षा कुछ रचनात्मक सहयोग का आपका सुझाव प्रशंसनीय है.इसी तरह किसी बात या कृत्य पर विरोध जताने वाले भी पुतला फूंक कर या तोड़ फोड़ कर विध्वंशात्मक विरोध के बजाय अन्य रास्ता अपना सकते हैं.
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